











- Brand: Pravasi Prem Publishing India
- Language: Hindi
- Weight: 400.00g
- Dimensions: 188.00mm x 240.00mm x 7.00mm
- Page Count: 124
- ISBN: 978-81-981364-6-6
खिलौनों का निर्माण कहीं भी हो, क्षणभंगुरता उनकी नियति मानी गयी है। कुदरत का खिलौना भी स्थायी नहीं होता। शैख हातिम की सीख हर किसी के अंतस में होती है, पर दुनिया में चहलकदमी भी तो बड़ी सच्चाई है। यहीं से स्थिति बदलती हुई सी लगती है। “किस्तम के खेल निराले मेरे भैया, किस्मत का लिखा कौन टाले मेरे भैया” याद कर यह रचनाकार चुप नहीं बैठ जाता। टूटे हुए खिलौने भी उससे बातें करते हैं।
इस संग्रह की कविता यात्रा 'वक्त' से शुरू होकर आखिरी कविता 'जिन्दगी की आस' तक जाती है। संग्रह के बीच में ऐसे तमाम विषय हैं जो किसी पल को बयान करते हैं और जिनमें पूरा काल भी समाहित होता है।
बी. एन. उपाध्याय , उत्तर प्रदेश के बलिया जनपद में सुखपुरा के निकट कुम्हिया ग्राम में जन्म। बड़े किसान परिवार में दूसरी पीढ़ी के सरकारी अधिकारी। यूनिवर्सिटी ऑफ इलाहाबाद से विज्ञान और विधि की डिग्री। बचपन से ही आम लोगों के करीब रहने का अनुभव। वर्ष 1993 में लोक सेवा आयोग, उत्तर प्रदेश से चयन और प्रदेश के कई जनपदों में राजस्व विभाग के सेटलमेंट ऑफिसर के रूप में शासकीय कार्यों का निर्वहन। रचनाओं में इस पारिवारिक और सामाजिक पृष्ठभूमि का प्रस्फुटन। कुछ समय पूर्व कविता संग्रह ‘भीड़ साक्षी नहीं होती’ प्रकाशित।
खिलौने भी खेलते हैं | बी. एन. उपाध्याय | पृष्ठ: 124 | मूल्य: ₹ 240.00 (पेपरबैक), ₹ 320.00 (हार्डकवर) | ISBN: 978-81-981364-6-6
Khiloune Bhi Khelte Hain | B N Upadhyay | Price: ₹ 240.00 (Paperback), ₹ 320.00 (Hardcover) | ISBN: 978-81-981364-6-6