देश
की सबसे ज्वलंत समस्याओं में सबसे ऊपर है जल
संकट। दुर्भाग्य है कि इस जल संकट को समाज ने ही बुलाया । काश हमने अपनी
जलनिधियों को सहेज कर रखा होता तो हमें एक बोतल पानी के लिए बीस रुपये नहीं
खर्च करने
होते। अफसोस, ना ही सरकार और ना
ही समाज इस पर गंभीरता से बात करता है, ना ही मीडिया के
माध्यम से इस विषय पर कायदे से बहस होती है, ना ही समाज का दर्पण कहलाने वाला सिनेमा भारत की
जल निधियों की दयनीय स्थिति और विलुप्त हो रहीं जल निधियों पर किसी प्रकार का कोई
फिल्म या शो बना रहा है।
“जलनिधियों को जीने दो” प्रवीण पांडेय की यह पुस्तक
हमें अपने आस-पास बहती जलनिधियों, ना जाने कितनी लुप्त हो चुकी जल धाराओं और गुम हो जाने के कगार पर खड़े जल-
खजानों के प्रति जागरूक करती है । झील, तालाब और पोखर के संबंध को समझने में भी यह पुस्तक सहायक है ।
पृष्ठ संख्या: 126, मूल्य: ₹370, ISBN- 978-81-969712-3-6, भाषा – हिंदी