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प्रजा ही विष्णु है

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₹234.00
₹260.00
Ex Tax: ₹234.00
  • Brand: Pravasi Prem Publishing India
  • Language: Hindi
  • Weight: 400.00g
  • Dimensions: 188.00mm x 240.00mm x 7.00mm
  • Page Count: 84
  • ISBN: 978-81-970511-9-7

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प्रजा ही विष्णु है : : लेखक – धर्मपाल अकेला

'महाभारत संसार के श्रेष्ठतम ग्रन्थ-रत्नों में अद्वितीय हैं। कथा-उपकथाओं का तो यह अक्षय भण्डार है; इसमें इतिहास, दर्शन, राजनीति, सामाजिक ज्ञान-विज्ञान, स्मृतियाँ, संहिताएँ और धर्म सम्बन्धित सूक्ष्मातिसूक्ष्म विवेचन-विश्लेषण इस प्रकार संगुम्फित है कि इसे भारतीय संस्कृति का मेरूदण्ड माना जा सकता है।भारत की कई आवृत्तियाँ हुई हैं।

महर्षि वेदव्यास ने केवल 8,000 श्लोक सृजे, जिनमें पाण्डव जन्म, पराक्रम और युद्ध की गाथा थी और ग्रन्थ का नाम रखा गया था- 'जय'। कालान्तर में महर्षि के पुत्र और शिष्य ने 'जय' का पुनर्लेखन करते हुए, उसमें अनेक प्रसंग और कथा-उपकथाएँ समाविष्ट कर दीं, जिससे श्लोक संख्या 24,000 तक पहुँच गई और इस ग्रन्थ का नाम पड़ा- 'भारत'। लोक में भारत-कथा का प्रचार और वाचन करते हुए जब शौनक आदि ऋषियों ने व्याख्या-विश्लेषण प्रारम्भ किया और इसे अधुनातन प्रसंगों से संयुक्त कर दिया, जिससे इसकी श्लोक संख्या एक लाख से भी अधिक हो गई, तब इसका नाम पड़ा- 'महाभारत' ।शुरू में भले ही लगे कि यह एक आम महाभारत का प्रसंग है, जिसे प्रहसन के रूप में ढाल दिया गया है। नाटक जब अपने चरम पर पहुंचता है तो द्वापर काल में लोकतांत्रिक मूल्यों के बिंब बड़ी सुंदरता से पिरो दिया गया है। द्रोपदी के चीरहरण के समय जब दरबार में सभी मौन बैठे थे, तब कृष्ण ही क्यों शील-रक्षा को आते हैं?

धर्मपाल अकेला (25 मार्च, 1937) देश के वरिष्ठतम साहित्यकारों में से एक हैं। दो शताब्दी पूर्व इनका परिवार कोकण से आ कर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के हापुड़ में बस गया था। विश्वविद्यालयी शिक्षा हापुड़ व मेरठ में ग्रहण करने के बाद सन 1962 में श्री अकेला का चयन रक्षा-लेखा सेवा में हो गया और वे सुदूर सीमांत भारत में यत्र-तत्र भ्रमण करते रहे। देश को नजदीक से देखने के कारण ही उनके लेखन में पत्रकारिता की अन्वेशण दृष्टि और नवाचर दिखाई देता है। उन्होंने कविता, कहानी, यात्रा-संस्मरण, रेडिया-वार्ता, पुस्तक समीक्षाएं आदि प्रचुर मात्रा में लिखीं। कई पुस्तकों का संपादन किया। उनके खोजपरक निबंध खासे चर्चित रहे। हिंदी की सेवा के संकल्प के चलते श्री अकेला ने दो प्रकाशन संस्थान स्थापित किए और तमिल व रूसी रचनाओं के हिंदी अनुवाद प्रकाशित किए।
श्री अकेला के इस नाटक 'प्रजा ही विष्णु' को उ.प्र. हिंदी संस्थान से 'भारतेंदु पुरस्कार' मिला है और इसका वाचन दिल्ली के श्रीराम सेंटर में हो चुका हैं।

पृष्ठः 84, मूल्यः 260, ISBN : 978-81-970511-9-7, भाषा - हिंदी