24 Jun

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है यहाँ बद-हाल कोई और कोई खुशहाल है
जिंदगानी दर्द-ओ-ग़म का इक सुनहरा जाल है
अक्सर ही हम मन हल्का करने
या ज़ेहनी सुकून के लिए किसी गज़ल, नज़्म और गीत का सहारा लेते हैं। कुछ-कुछ
गज़ले, नज़्में और गीत ऐसे होते हैं जिन्हें पढ़ कर या सुन कर ऐसा लगता है जैसे की
ये हमारे बारे में ही है या यूँ कहें की यह तो वही सब कुछ है जो हम महसूस करते हैं,
या कहना चाहते हैं।
फिल्मी दुनिया में भी जब
किसी को अपने दिल की बात कहनी होती है, किसी को अपने ऊपर गुजरी आपबीती सुनानी होती
है या अपने जज़्बात ज़ाहिर करने होते हैं तब गज़लों, नज़्मों और गीतों का ही सहारा
लिया जाता है। क्यूंकि जो बात हम नहीं कह पाते वो बातें बड़ी ही सलाहियत से एक
गज़ल का मिसरा कह देता है।
डॉ. शबाना नज़ीर ने अपनी
किताब “सागर किनारे” में उसी सलाहियत के साथ अपनी जिंदगी को गज़लों, नज़्मों और गीतों
की शक्ल में पेश किया है इसके साथ ही शबाना नज़ीर ने अपनी गज़लों, नज़्मों और
गीतों के जरिए वर्तमान परिस्थितियों और जिंदगी को सकारात्मक ढंग से जीने का जो
हुनर है उसे भी अपनी कलम से कागज़ पर उतारा है।
उनकी गज़ल का एक शेरः-
दुनिया है यहाँ तो मिलना है
हर आदमी के साथ
लेकिन मिज़ाज मिलता नहीं हर
किसी के साथ
यह शेर एक ऐसी सच्चाई को
बयां करता है जो की नीम से भी कड़वी है लेकिन जितनी खूबसूरती के साथ यह बात कही गई
है उसे किसी गज़ल के शेर के जरिए ही कहा जा सकता था। अक्सर, हम बहुत सारे
कार्यक्रम देखते हैं सुनते हैं बड़े-बड़े नेता – अभिनेता भी अपनी बात को बेहतर ढंग
से कहने और समझाने के लिए शायरी का ही सहारा लेते हैं।
डॉ. शबाना नज़ीर ने अपनी
किताब अपने मरहूम शौहर नासिर नज़ीर साहब को समर्पित की है जिनके लिए आप लिखती हैं
---
ये और बात कि मंज़िल से
पहले छोड़ गए
मगर जो साथ रहा वो तो
बेनज़ीर रहा
“सागर किनारे” में इसी तरह
सभी गज़ले, नज़्में और गीत बेनज़ीर हैं। डॉ. शबाना ने अपनी जिंदगी जिसमें शौहर,
बच्चों और अपने परिवार के साथ-साथ मौसम, तन्हाई, खुशी, गम़, रिश्ता, ज़ख़्म,
खामोशी, यादें जैसे तमाम पहलुओं को गज़लों, नज़्मों और गीतों की शक्ल में पेश किया
है।
एक क़तआ –
तेरा दर और मेरी जबीं है
क्यों यकीं मेरे दिल को नहीं
है
मेरे मौला ये तेरा करम है
ये मुक़द्दर तो ऐसा नहीं है
किताब के बारे में –
किताब – सागर किनारे
लेखिका – डॉ. शबाना नज़ीर
प्रकाशक – प्रवासी प्रेम
पब्लिशिंग इंडिया
प्रकाशन – 2024
मूल्य - ₹230
पुस्तक समीक्षक
मौ. वाजिद अली
ई-मेल - mohdwazidali18@gmail.com
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