सुभाष चंद्र कुशवाहा मेरे प्रिय लेखक हैं।कहानी के अलावा वे उन विषयों पर शोधपूर्ण किताबें लिखते हैं जिन पर प्रायः काम नहीं हुआ है या बहुत कम हुआ है।चौरी चौरा,अवध का किसान विद्रोह,टंटया भील, जैसे विषयों पर उनका काम ऐतिहासिक महत्व का है।

     इसी क्रम में उनकी एक किताब “कबीर हैं कि मरते नहीं”का दूसरा संस्करण हिन्द युग्म से आया है।पहले यह किताब अनामिका प्रकाशन से आई थी।सुभाष जी ने इस किताब में कबीर और भारतीय पुनर्जागरण तथा हज़ारीप्रसाद द्विवेदी और कबीर जैसे दो अध्याय और जोड़े हैं।कबीर के यहाँ स्त्री को लेकर भी उन्होंने अपना मत सामने रखा है।

       हर बड़े कवि या लेखक पर नित नये शोध होते हैं।यही उनकी सार्थकता और महत्व को दर्शाता है।

     कुशवाहा जी के इस प्रयास के बारे में इतना ही कहूँगा कि यह पुस्तक एक नया प्रस्थानबिंदु है और आगामी किसी भी विमर्श में यह एक ज़रूरी किताब सिद्ध होगी।

       लेखक को आगामी प्रयासों के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ।

जय नारायण बुधवार